पुराणों का उद्घोष है कि कलियुग के चरमोत्कर्ष पर अधर्म का नाश तथा धर्म कि स्थापना के लिए भगवान् श्रीविष्णु का दसवां अवतार श्रीकल्कि नारायण के रूप में सम्भल नामक स्थान पर होगा।
श्रीकल्कि भगवान् कहाँ अवतरित होंगे इस जिज्ञासा को श्रीमद्भागवत का यह श्लोक शांत करता है –
शम्भल ग्राममुख्यस्य ब्राह्मणस्य महात्मनः।भवने विष्णुयशसः कल्किः प्रादुर्भविष्यति।।
अर्थात् सम्भल में विष्णुयश ब्राह्मण के घर श्रीकल्कि नारायण भगवान् का जन्म होगा। किन्तु सम्भल कौन सा है और कहां पर है? इस प्रश्न का उत्तर स्कन्द पुराण के श्लोक में मिलता है।
स्कन्द पुराण (२.४) के अन्तर्गत सम्भल माहात्म्य में स्कन्द जी ने अगस्त्य जी से कहा है –
आकर्णय महाभाग पुरवै शाम्भलेश्वरं।
गंगा रथ प्रामध्यसथं क्षेत्रं वै योजन त्रयं।।
हे अगस्त! जिस सम्भल में भगवान् श्रीकल्कि नारायण अवतार ग्रहण करेंगें वह सम्भल नगर भागीरथी तथा रामगंगा के मध्य तीन योजन विस्तृत क्षेत्र में फैला होगा। जिसमें 68 तीर्थ 19 कूप तथा कदम्ब का महावृक्ष आदिकाल में श्रीब्रह्माजी द्वारा स्थापित किया जायेगा। सम्पूर्ण सम्भल नगर की संरचना भगवान् शिव के आदेश पर प्रजापति ब्रह्मा के सानिध्य में जगन्नियन्ता श्रीविश्वकर्माजी द्वारा की जायेगी।
पुराणों की इस उद्घोषणा को आधार मानकर सिखों के दशम् गुरु श्रीगोविन्द सिंहजी महाराज ने अपने दशम् ग्रन्थ में भगवान् श्रीकल्कि नारायण के अवतार को निष्कलङ्क अवतार कहते हुए 124 सवैया और छन्दों की रचना की।
श्रीगुरुगोविन्द सिंह महाराज की वाणी सृष्टि के अन्तिम काल तक अमर रहेगी ।
पाप समूह विनाशन कूं कल्कि अवतार कहावेंगे।
तुर कच्छी तुरंग सपच्छ बड़ो कर नाल कृपाण कंपावेंगे।। निकसे जिमि केहरि पर्वत सौ तस शोभि देवालय पावेंगे। भले भाग भये एही सम्भल के हरि जू हरि मंदिर आवेंगे।।
श्रीमद्भागवत महापुराण और अन्य प्रमुख पुराणों की उद्घोषणा के आधार पर भारत के प्रमुख संतों ने उत्तर प्रदेश के जनपद सम्भल के गांव ऐंचोड़ा कम्बोह में गोलोकवासी सिद्ध महापुरुष महान् तपस्वी संत बाबा गुरशरण दास जी की तपोस्थली को श्रीकल्कि पीठ के रूप में मान्यता प्रदान करते हुए, 2 नवम्बर, 2007 को आचार्य प्रमोद कृष्णम का श्रीकल्कि पीठ के पीठाधीश्वर के रूप में पट्टाभिषेक करते हुए, सर्वसम्मति से श्रीकल्कि धाम के निर्माण का संकल्प लिया।
श्रीकल्किपीठाधीश्वर आचार्य प्रमोद कृष्णम जी के द्वारा श्रीकल्कि पीठ के निर्माणार्थ घोषणा की सूचना ने धार्मिक और आध्यात्मिक जगत को एक नव उल्लास से सराबोर कर दिया। किन्तु कुछ सनातन विरोधी असामाजिक और कट्टरपंथी संगठनों द्वारा श्रीकल्कि धाम के निर्माण का विरोध करने पर तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने श्रीकल्कि धाम के निर्माण पर रोक लगाने का धर्म-विरूद्ध आदेश जारी करने का काम किया। अठारह वर्ष के लंबे संघर्ष के बाद परमपिता परमात्मा की परम अनुकम्पा और संतों के शुभाशीष के पुण्य प्रभाव से इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने तत्कालीन उत्तर प्रदेश शासन के द्वारा श्रीकल्कि धाम के निर्माण पर लगाई गई सभी प्रकार की पाबंदी को सिरे से खारिज करते हुए धाम के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया।
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